द्वितीय अध्याय
अर्ध टालबोट, अर्ध प्युजोट, मगर शत प्रतिशत पी.एस.ए.
1980 में प्युजोट ने कुछ मुश्किल भरे क्षणों का अनुभव किया था। जो भी वाहन कम्पनी ने बनाए, उनकी अच्छी कीमत कम्पनी को नहीं मिली थी और इसी वजह से कम्पनी के इन्जीनियर एक ऎसी कार बनाने में लग गये जिससे कि कम्पनी को अच्छा फायदा हो सके। इस कार को अंततः सन 1982 में 205 के नाम से प्रस्तुत किया गया। 1984 तक, बाज़ार में 205 के अच्छे प्रदर्शन के बावजूद, टालबोट के गिरे स्तर व फ्रांस स्थित इकाई में हडतालों के चलते, प्युजोट को काफी निवेश करना पड गया। इस वजह से प्युजोट ने निर्णय लिया कि टालबोट का उत्पादन बंद करना पडेगा।
इसी समय के मध्य, सी-28 प्रोजेक्ट को भी पूरा कर लिया गया। इस नये वाहन को सन 1985 में नाम दिया गया प्युजोट 206, मगर बाद में कम्पनी ने इसका नाम बदलकर 309 रख दिया। अगर आपको यह नाम कुछ अटपटा लग रहा है, तो बता देवे कि प्युजोट के पास कोई अन्य विकल्प मौजूद नहीं था। दो आने वाली कारें : 405 जिसके द्वारा कम्पनी फिर से 40x के माडल पर वापस आना चाहती थी, और 605 जो कि 604 का स्थान लेने वाली थी। प्युजोट इस कार का नाम 306 भी नहीं रख सकती थी क्योंकि 405 और 605 सिरीज़ की कारें पहले से ही अनुमोदित कर ली गयीं थीं, और x06 सिरीज़ को प्रस्तुत करने का समय अभी आया नहीं था। इसी कारण कम्पनी ने फैसला लिया कि कार को 30x क्षेणी में ही रखना पडेगा क्योकि यह कार 205 से बडी थी मगर आने वाली 405 से छोटी थी। इस कार के बाज़ार में प्रस्तुत करने के मात्र तीन या चार माह पहले ही इसका नाम 309 रखा (इससे पहले कम्पनी ने दूसरा नम्बर सोंच रखा था)। यह भी माना जा सकता है कि कम्पनी ने इस कार का नाम बिलकुल अलग इसलिए रखा क्योंकि पहले की कारों के विपरीत इसमें पांच दरवाज़े थे। इस कार में पीछे के क्लासिक बूट के स्थान पर एक पांचवा दरवाज़ा था।
फरवरी 1986 में प्युजोट 309 को बाज़ार में प्रस्तुत कर दिया गया। इसके पांच प्रतिरूप बाज़ार में प्रस्तुत किये गये, जी.ई., जी.एल., जी.आर. प्रोफाइल और एस.आर. इन्जेक्शन।
प्युजोट 309 के कई मूलतत्व प्युजोट 205, 305 और सिट्रोएन बी.एक्स. से मिलते जुलते है। यह प्युजोट 205 से 4 इंच बडी और 305 से 2 इंच लम्बी मगर 8 इंच छोटी है। इसकी लौह काया जिसपर विद्युतिकरण के द्वारा जस्ता की परत है, इसके 40 प्रतिशत भार का कारण है। इस कार में कुल 2528 वेल्डिंग के जोड हैं जिनमें से 2492 रोबोट के द्वारा किये जाते हैं। अगर इसकी तुलना 305 से करें तो यह और अधुनिक साबित होती है क्योंकि 305 में 4020 वेल्डिंग के जोड थे जिनमें से 990 को मानवों द्वारा करना पडता था। इस वजह से इसका भार मात्र 216 किलोग्राम ही था, मगर 305 के कुछ प्रारूपों का वजन 260 किलोग्राम तक था।
जब यह कार प्रस्तुत की गयी थी, 309 में एक अच्छी क्षमता यह भी थी कि इसका ड्रैग कोफिसेंट 0,30 जी.आर. प्रोफाईल प्रारूप के लिए था और 0,33 बाकी प्रारूपों के लिए था। यह ग्राहकों के लिए भी एक चिंता का विषय था क्योंकि उनको भी पता होना चाहिए था कि जो कार वो खरीदने वाले थे क्या यह कार कम पेट्रोल का खपत करेगी।
बडी बडी मैगज़ीने ज्यादातर प्युजोट 309 की तुलना छोटी मर्सिडीज़ से करती थीं, क्योकि इसकी चौंडाई इसकी लम्बाई की तुलना में अधिक थी। प्रेस तो यहां तक कहती थी कि इसका डैशबोर्ड और कार का ढांचा नया नहीं था। मगर सन 1989 में प्युजोट ने अपने आलोचको को लुभाने के लिए एक नई 309 एम.के.II को प्रस्तुत किया, इसकी अगली ग्रिल, पिछली लाइटें तथा डैशबोर्ड बिलकुल नये प्रारूप में तैयार किये गये थे, मगर अभी भी यह रद्दी दर्ज़े के प्लास्टिक से तैयार किये गये थे।
प्युजोट 309 एक ऎसी कार थी जो कि पूर्ण रूप से ब्रिटेन के रेयटन फैक्ट्री मे तैयार होती थी और इस वजह को प्युजोट ब्रिटिश ग्राहको को लुभाने के लिए प्रयोग करने लगे। यह काफी हद तक सफल भी साबित हुआ, क्योकि 309 ऎसी कार थी जो कि फोर्ड कम्पनी की एस्कार्ट कार से बेहतर थी और प्युजोट 309 जी.टी.आई. यू.के. व अन्य यूरोपीय बाज़ारों मे काफी सफल साबित हुई। इसके बाद प्युजोट ने 309 का नया प्रारूप 309 जी.टी.आई.16 भी प्रस्तुत किया, इसमें वही 160 हार्स पावर का इंजन लगा हुआ था जो कि प्युजोट 405 एम.आई.16 मे लगा था। इस प्रारूप को जी.टी.आई. का सबसे बेहतर प्रारूप माना जाता है, मगर दुर्भाग्यवश यह प्रारूप ब्रिटेन के ग्राहकों के लिए उपलब्ध नहीं था। ब्रिटेन के बाज़ार में जी.टी.आई. गुडवुड का लिमिटेड संसकरण उपल्ब्ध हुआ जो कि वास्तव में एक जी.टी.आई. प्रारूप था जिसमें चमडे का असबाब, रेस हरा रंग, गाढे सिलेटी अलाय के पहिए, लकडी की स्टेयरिंग फिट की गयी थी, ताकि इसे एक ब्रिटिश एहसास दिया जाये।
कारें जो कि ब्रिटेन में बनी थी, सिर्फ ब्रिटेन के ग्राहकों के लिए ही नहीं बनाई गयी थीं। वास्तव में जापान और न्यूज़ीलैंड में जो कारें प्रस्तुत की गयीं, वह भी ब्रिटेन की फैक्ट्री में बनीं थीं। प्युजोट ने तीन सौ से ज़्यादा वातानुकूलित 309 जापान के बाज़ार के लिए बनाई थीं मगर अज्ञात कारणों की वजह से ये वापस भेज दी गयीं, फिर इन्हे ब्रिटेन के बाज़ारों में बेंच दिया गया। यही कहानी प्युजोट 309 एस.एल. और एस.आई. प्रारूपों के साथ दोहराई गयी, जिन्हें जापान की जगह ब्रिटेन में बेंचा गया।
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