परीक्षण

गरम माहौल में परीक्षण

जब इस प्रोजेक्ट को पूरा कर लिया गया, तब प्युजोट ने सी-28 के 28 चलित प्रतिरूप तैयार करवाए, इन सब का कठिन स्थितियों में परीक्षण होना था। प्युजोट ने सबसे पहले इन्हे अपने निजी सर्किट पर परीक्षित किया, बेलेचैम्पस में जो कि सोचुआक्स के पास है और मोर्टेफोन्टीन जो कि उत्तरी पेरिस में स्थित है। फिर छः जगह चुनी गयीं जिनमें एक आइवरी कोस्ट और दूसरी फिनलैण्ड में स्थित थीं। आइवरी कोस्ट का परीक्षण कार के वायु संचार और धूल-मिट्टी से नुकसान के लिए किया गया। प्रतिरूप कार को सावधानी पूर्वक पैक किया गया, फिर एक बडे से कन्टेनर मे रख दिया गया और उसको एक बोइंग 747 माल वाहक विमान में रख कर आबिदजान पहुचा दिया गया। कार को भेजने में कुल शुल्क लगा पचास हज़ार पौण्ड। आबिदजान पहुंचने पर कार को उत्तर की ओर शहर से दूर ले जाया गया ताकि कार को कोई देख न पाए। कार में यात्रियों के बैठने की जगह पर थर्मामीटर लगाया गया था और उसकी डिग्गी में सारी जानकारी एकत्र करने के लिए एक कम्प्यूटर लगाया गया।
वाहनों का परीक्षण इसलिए भी जरूरी था क्योंकि निजी सर्किट में सारे परीक्षण नहीं किए जा सकते थे और उन परिस्थितियों को पैदा नहीं किया जा सकता था जो कि असल में यात्री महसूस करते हैं। प्रतिरूपों को इस वजह से कठिन परीक्षणों से गुज़रना पडता है जिसे प्रायः गरम और ठण्डे प्रदेशों मे पूरा किया जाता है।
चलिए अब कहानी में वापस आयें। प्युजोट के इंजीनियर भी आइवरी कोस्ट में थे जहां सी-28 का परीक्षण होना था और बताते चलें कि इस सबमें कुल छः लाख का खर्च आया। कार को पूरे देश में दौडाया गया और उसमें लगे कुछ विशेषज्ञ मशीनों ने सारे डाटा को रिकार्ड कर लिया। हालांकि कार फ्रांस से हज़ारो किलोमीटर दूर थी, मगर यह छुपी नहीं रह सकी। परीक्षण के दौरान दो पुलिस वालों ने इंजीनियरों को पकड कर इसलिए पूछताछ की क्योंकि उन्होंने यह कार पहले कभी नहीं देखी थी। मगर इंजीनियरों को इन मामलों से निपटने के तरीके पता थे और उन्होंने पुलिस को बता दिया कि कार वास्तव में दूसरे देश की है। असल में इंजीनियर हमेशा यही बात बताते है, जबकि 205 के परीक्षण के समय उस कार में साइरिलिक का बिल्ला लगा हुआ था।
वायु बहाव के परीक्षण के लिए कार की पिछली खिडकी खोल कर दबाव मुक्त कर दिया गया और थर्मामीटर कार के अलग अलग भागों में लगा दिए गए।
वायु संचार उपकरणों की खामी यह है कि वह बहुत आवाज़ करते है, हालांकि कुछ सुधारों के बाद इंजीनियरों ने इसमें थोडी बहुत कमी कर ली थी। धूल मिट्टी से बचाव के परीक्षण में बिलकुल उलट किया जाता है, मतलब खिडकी दरवाज़े मज़बूती के साथ बंद कर दिए जाते हैं ताकि अतिरिक्त दबाव बनाया जा सके। सारे परीक्षण सफलता पूरक पूर्ण कर लिए गए।
कार को बार बार दौडाया गया और इंजीनियरों ने देखा कि कार का सस्पेंशन खराब सडकों के लिए बहुत ही अच्छा है। ठीक इसी समय एक प्रतिरूप के सस्पेंशन का परीक्षण कीन्या में भी चल रहा था। पूरे परीक्षण के दौरान कार में चार व्यक्ति उपस्थित रहते थे और एक और कार जो कि वहीं किराए पर ले ली गयी थी उसके पीछे पीछे चलती थी।
सारे परीक्षणों का परिणाम बहुत ही अच्छा रहा और कारे फ्रांस वापस भेज दी गयीं।

ठण्डे माहौल में परीक्षण

दूसरे प्रतिरूपों को अत्यधिक ठण्डे उत्तर के फिनलैण्ड में भेजा गया जहां फिनमार्क में बहुत ही ज़्यादा सर्दी थी।
कार को उसके अंतिम पडाव इवालो, जो कि फिनलैण्ड का एक छोटा सा शहर है में हवाई जहाज़ के माध्यम से भेजा गया। उस शहर में सिर्फ एक होटल है जहां प्युजोट के इंजीनियर अन्य गाडियों का परीक्षण करने आये इंजीनियरों से मिले। परीक्षण के दौरान वोल्स वैगन और फोर्ड के इंजीनियरों ने बताया कि कोई स्वीडन से पंजीकृत साब 9000 टर्बो से प्रतिरूपों का पीछा कर रहा था।
इस प्रतिरूप को होटल के पास ही स्थित एक गैराज में खडा किया जाता था। रोज़ सुबह इंजीनियर एक वोल्सवैगन ज़ैटा से आते थे जिसके इंजन को कृतिम रूप से हीटरों के माध्यम से रात भर गरम रखा जाता था, वहां यही स्थिति प्रचलित थी। कभी कभी तापमान शुन्य से पचास डिग्री तक नीचे चला जाता था इसलिए कार को गरम रखने के बावजूद जाने के 15 मिनट पहले ही चालू करना पडता था।
सी-28 पर सवार हो कर इंजीनियरों ने सैकडों किलोमीटर का सफर किया और नार्वे और स्वीडन का बार्डर भी पार किया।
जैसा कि आइवरी कोस्ट में किया गया था इंजीनियरों ने कार का वायु संचार यहां भी परीक्षित किया, और प्रयोग में इसे सफल पाया गया।
इतनी महगी होने के बावजूद इंजीनियरों ने उसको 120 की रफ्तार पर दौडा कर देखा, वह भी बर्फीली सतह पर। उस कार ने अच्छा प्रदर्शन किया।
कार को पूरे दिन किर्किनेस तक दौडाया गया, जो कि रूस की सीमा के बहुत ही समीप है। उन्होंने नार्वे के मिलेट्री जवानों को भी देखा जो अथक परीश्रम कर के प्रसिक्षण ग्रहण कर रहे थे।

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