तृतीय अध्याय

सच्चाई से पर्दा उठाने क क्षण

सी-28 प्रोजेक्ट शुरू तो 1982 में हुआ था मगर उसका अध्यन 1980 में ही शुरू हो गया था। इस कार के आकार का 1983 में चयन हो गया था और 1984 में कार को फिनलैंड और आइवरी कोस्ट उसकी मज़बूती मापने के लिए भेज दिया गया था। इस कार के बाज़ार में आने के कुछ माह पहले ही कुछ एक पत्रिकाओं ने यह कह दिया था कि कार का आकार 205 के समान है। अब हम अपने आप से एक सवाल कर सकते हैं कि इसका टालबोट से क्या लेना-देना था और ऎरिज़ोना नाम कहां से आ गया?
इस सवाल का जवाब पाने के लिए हमें पहले प्युजोट की 1970 और 1980 के मध्य की नितियों को देखने की ज़रूरत है।
1970 के दौरान रेनाल्ट कारें काफी लोकप्रिय हुआ करती थीं और प्युजोट कारों को काफी पिछडा माना जाता था। यहां तक की कार ब्रांड की तस्वीर ही काफी पुरानी मानी जाती थी। प्युजोट 305 जो कि वर्ष 1977 में बाज़ार प्रस्तुत की गयी थी को बहुत कम लोकप्रियता हासिल ही थी, मगर रेनाल्ट 18 और फोर्ड ग्रनाडा को नए ज़माने की कार होने का दर्ज़ा हासिल था। इसी वजह से बंदी को टालने के लिए प्युजोट को जल्द ही कोई कदम उठाना था। प्युजोट ने इस वजह से फैसले तो लिए मगर सब पुराने तरीके से। असल में यह ग्रुप ने सैकडों व हज़ारों के रोज़ के नुकसान के बावजूद फैसला लिया कि वह और निवेश करेगा।
ग्रुप ने फ़ैसला लिया कि वह क्रिसलर की यूरोपीय शाखा खरीदेगा बावजूद इसके कि क्रिसलर यूरोप को कोई नहीं खरीदना चाहता था। मगर प्युजोट का यह फैसला उसकी परिस्थिति को देखते हुए, विरोधाभाव व बेवकूफी से भरा हुआ लग रहा था। असल में सारे कार निर्माता प्युजोट के इस कदम का जमकर मज़ाक बनाने लगे मगर किसी ने इस कदम को उस प्रकार से नहीं देखा जैसा कि प्युजोट ने देखा था।
क्रिसलर यूरोप दो कम्पनियों से मिल कर बनी थी, सिमका जो कि एक प्रसिद्ध फ्रेंच ब्रांड था और रूट्स सनबीम, एक ब्रितानी ब्रांड जिसने टालबोट कार निर्माता को प्रथम विश्व युद्ध के बाद खरीदा था। बिक्री से जुडे दस्तावेज़ों पर दस्तखत कर दिए गये और प्युजोट ने उसका नाम बदलकर टालबोट रखा, वजह थी ब्रिटिश ग्राहकों को लुभाने के लिए।
क्रिसलर यूरोप खरीदने के एक वर्ष के उपरांत टालबोट नाम रख दिया गया मगर कारों में टालबोट का चिन्ह नहीं लगाया। प्युजोट ने निवेश करने का फैसला लिया और अंततः टालबोट 1510 या टालबोट अल्पाइन को बाज़ार में प्रस्तुत किया, जो कि वास्तव में 1307 का एक सुधरा हुआ रूप थी। बाद में प्युजोट ने टालबोट सोलारा को बाज़ार में प्रस्तुत किया जिसपर क्रिसलर-सिमका पहले से ही कार्य कर रही थी, यह कार एक टालबोट अल्पाइन से बडकर नहीं थी जिसमें क्लासिक बूट था। और उसके बाद टालबोट साम्बा प्रस्तुत की जो कि प्युजोट 104 की नकल थी मगर उससे थोडी लम्बी थी। कुल मिला कर ग्रुप ने निवेश तो किया मगर ज़्यादा नहीं। मगर इसके परिणाम बेहद अच्छे साबित हुए। बावजूद इसके कि कारों की कीमतें कुछ ज़्यादा रखी गयी थी, टालबोट 1510 या अल्पाइन और टालबोट साम्बा यू.के. में खूब बिकीं। टालबोट सोलारा जो कि स्पेन में बनी थी, वह भी वहां पसन्द की गयी।
फिर प्युजोट ने क्रिसलर सिमका और प्युजोट को एकीक्रत कर दिया। मगर समस्या यह थी कि डीलरों को प्युजोट बेंचने पर ध्यान देने को कहा गया न कि टालबोट। फ्रांस में भी यही स्थिति थी और वहां डीलर ग्राहको को यह बताते थे कि कैसे प्युजोट टालबोट से ज़्यादा विश्वसनीय है।
पी.एस.ए. ग्रुप ने ज़्यादा निवेश नहीं किया था मगर फिर भी अपनी इस चालाकी की वजह से उसने काफी पैसे कमा लिए। दोनो कारो की बिक्री ब्रिटेन और फ्रांस में बहुत अच्छि जा रही थी। स्पेन में जहां सोलारा बनाई गई थी, वहां तो यह कार 1986, जब तक कार का निर्माण बन्द नहीं हो गया तब तक बनाई जाती रही। अब कम्पनी के पास इतना निवेश एकत्रित हो गया था कि वह अपने काम में आगे बढ सके, और फिर आयी एक नई कार जिसे हम सब प्युजोट 205 के नाम से जानते हैं। जब 205 को बाज़ार में प्रस्तुत कर दिया गया तब हैचबैक कारों के बाज़ार को देखते हुए कम्पनी ने सी-28 पर काम शुरू कर दिया।
अब तो उत्तर सामने है कि टालबोट का और एरिज़ोना नाम का प्युजोट 309 से कोई लेना-देना नहीं है। प्युजोट का जो निवेश ग्रुप में हुआ था वह सिर्फ एक छलावा था जिसके द्वारा कम्पनी ने लोगों को मूर्ख बनाया था। और कम्पनी के इस कदम ने उसकी मदद भी कि, असल में प्युजोट आज भी विद्यमान है, इसके लिए सिर्फ टालबोट को ही धन्यवाद करना चाहिए। निवेश काफी कम था और बिक्री भी काफी नहीं थी मगर यह प्युजोट को मुश्किल से निकालने में सफल साबित हुआ। यह सब सिर्फ तब तक था जब तक कि प्युजोट की 205 बाज़ार में न आ गयी और एक बार फिर से टालबोट को बाज़ार से गायब कर दिया गया। कम्पनी ने टालबोट का अध्ययन किया था और वह भी सिर्फ अपना मकसद पूरा करने के लिए, प्युजोट को टालबोट बनाने के लिए नहीं।

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